मेरा गांव आयर – आस्था, विकास और भ्रष्टाचार के बीच फंसी सच्चाई
भूमिका: एक ऐसा गांव, जो सवाल भी करता है
भारत की आत्मा गांवों में बसती है — यह पंक्ति हम सभी ने सुनी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या हमारी व्यवस्था भी गांवों की आत्मा की कद्र करती है?
बिहार के भोजपुर ज़िले में स्थित मेरा गांव आयर एक ऐसा गांव है, जहां एक तरफ़ मंदिरों की घंटियां, छठ पूजा की आस्था और आपसी भाईचारा है, तो दूसरी तरफ़ सरकारी योजनाओं की लूट, जवाबदेही की कमी और खुला भ्रष्टाचार भी है। यह ब्लॉग सिर्फ़ तारीफ़ नहीं है, बल्कि सवाल पूछने और जवाब मांगने की ईमानदार कोशिश है।
गांव आयर का परिचय: सुविधाओं वाला, फिर भी अधूरा
मेरा गांव आयर, भोजपुर (बिहार) में स्थित है। यह कोई दूर‑दराज़ का पिछड़ा गांव नहीं है। यहां:
- रोज़मर्रा की ज़रूरत की लगभग हर चीज़
- दुकानें, स्कूल, बिजली
- धार्मिक और सामाजिक जीवन
सब कुछ मौजूद है। फिर भी सवाल उठता है — अगर सब है, तो गांव आज भी मूलभूत समस्याओं से क्यों जूझ रहा है?
मंदिर और आस्था: जहां गांव एक होता है
गांव आयर की पहचान यहां के अनेक मंदिर हैं। हर मोहल्ले में मंदिर मिल जाना यहां आम बात है। सुबह‑शाम बजती घंटियां और पूजा‑पाठ गांव को शांति का एहसास कराती हैं।
गांव का पोखरा सिर्फ़ पानी का स्रोत नहीं, बल्कि आस्था का केंद्र है। छठ पूजा के दौरान यही पोखरा गांव की आत्मा बन जाता है।
- साफ़ घाट
- दीपों की कतारें
- छठी मइया के गीत
उस समय जाति, राजनीति और विवाद सब भूलकर पूरा गांव एक हो जाता है। यही आयर की असली ताकत है।
शिक्षा व्यवस्था: इमारतें हैं, सवाल कायम हैं
गांव में:
- 3 सरकारी स्कूल
- 2 छोटे प्राइवेट स्कूल
मौजूद हैं। काग़ज़ों में यह एक अच्छी तस्वीर दिखती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत अलग है।
सरकारी स्कूलों में:
- पढ़ाई की गुणवत्ता पर सवाल
- शिक्षक नियमित नहीं
- निगरानी की भारी कमी
यही कारण है कि सक्षम परिवार अपने बच्चों को गांव से बाहर भेजने को मजबूर हैं। अगर शिक्षा ही कमजोर रहेगी, तो गांव का भविष्य कैसे बदलेगा?
बाजार और आत्मनिर्भरता: गांव की मजबूत नस
आयर की एक बड़ी उपलब्धि है — इसकी स्थानीय बाजार व्यवस्था।
- राशन
- सब्जी
- कपड़े
- मोबाइल और दैनिक ज़रूरतें
सब गांव में ही उपलब्ध हैं। किसी छोटी चीज़ के लिए शहर भागने की मजबूरी नहीं। यह गांव को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाता है और यह एक बड़ी सकारात्मक बात है।
गांव के लोग: अच्छाई भी, टकराव भी
गांव के लोग भी गांव की तरह हैं — मिश्रित स्वभाव के।
- कुछ लोग शांति, सहयोग और भाईचारे के प्रतीक हैं
- तो कुछ लोग विवाद, राजनीति और अशांति फैलाने वाले भी हैं
लेकिन संकट के समय यही लोग एक‑दूसरे के साथ खड़े दिखते हैं। यही उम्मीद अभी ज़िंदा है।
बिजली व्यवस्था: जो ठीक है, उसे मानना भी ज़रूरी है
आज गांव आयर में बिजली व्यवस्था अपेक्षाकृत अच्छी है। यह एक सच्चाई है और इसे स्वीकार करना चाहिए।
बिजली से:
- बच्चों की पढ़ाई
- मोबाइल‑इंटरनेट
- छोटे व्यवसाय
को सीधा फायदा मिला है। लेकिन सवाल यह है — जब बिजली सुधर सकती है, तो बाकी व्यवस्थाएं क्यों नहीं?
नाली और सफाई व्यवस्था: शर्मनाक हकीकत
अगर किसी एक व्यवस्था ने गांव की हालत बिगाड़ी है, तो वह है नाली और सफाई व्यवस्था।
- कई जगह नालियां जाम
- कहीं अधूरी
- बरसात में गंदा पानी सड़कों पर
यह सिर्फ़ असुविधा नहीं, बल्कि बीमारियों को खुला निमंत्रण है। सवाल उठता है:
हर साल नाली के नाम पर पैसा जाता है, तो वह पैसा जाता कहां है?
पानी की टंकी: योजना पूरी, पानी गायब
गांव में पानी की टंकी लगाई गई। फोटो खिंची, फाइलें बनीं, भुगतान हुआ — लेकिन पानी नहीं आया।
आज स्थिति यह है कि:
- टंकी खड़ी है
- योजना पूरी बताई जाती है
- जनता अब भी हैंडपंप पर निर्भर है
यह सीधा‑सीधा सरकारी योजना की लूट नहीं तो और क्या है?
स्वास्थ्य केंद्र: इलाज नहीं, सिर्फ़ नाम
गांव में स्वास्थ्य केंद्र मौजूद है, लेकिन हकीकत में वह एक बंद मकान बनकर रह गया है।
- न डॉक्टर
- न दवाइयां
- न नियमित सेवा
बीमारी में गांव वाला मजबूर होकर बाहर जाता है। सवाल यह है:
जब स्वास्थ्य केंद्र के लिए बजट आता है, तो इलाज क्यों नहीं मिलता?
पंचायत व्यवस्था की सच्चाई: जब मुखिया ही ग़ायब हो
गांव आयर की पंचायत व्यवस्था की सबसे बड़ी और कड़वी सच्चाई है — मुखिया की निष्क्रियता।
काग़ज़ों में मुखिया पंचायत का सबसे बड़ा और ज़िम्मेदार पद होता है। लेकिन आयर में हालात इसके ठीक उलट हैं।
मुखिया का सबसे बड़ा दोष: गैरमौजूदगी
गांव की आम शिकायत यह है कि:
- मुखिया खुद पंचायत भवन नहीं आता
- पंचायत भवन अक्सर खाली रहता है
- जनता की सुनवाई नहीं होती
जब मुखिया ही मौजूद नहीं रहेगा, तो वार्ड सदस्य क्यों आएंगे? यही कारण है कि मुखिया की कमी के कारण पंचायत भवन में कोई नहीं आता। पंचायत व्यवस्था काग़ज़ों तक सिमट कर रह गई है।
मुखिया की चुप्पी = भ्रष्टाचार को खुली छूट
गांव की नाली, पानी की टंकी, स्वास्थ्य केंद्र, सफाई — हर जगह अव्यवस्था है। यह सब बिना मुखिया की जानकारी के नहीं हो सकता।
सवाल साफ़ है:
जब गांव की हालत बिगड़ रही थी, तब मुखिया क्या कर रहा था?
अगर मुखिया सक्रिय होता:
- नालियों की हालत इतनी खराब नहीं होती
- पानी की टंकी शोपीस बनकर खड़ी नहीं रहती
- स्वास्थ्य केंद्र बंद मकान नहीं बनता
जवाबदेही किसकी है?
गांव का हर विकास कार्य अंततः मुखिया की निगरानी और ज़िम्मेदारी में आता है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि:
पंचायत में जो भी गलत हो रहा है, उसकी सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी मुखिया की है।
यह आरोप नहीं, बल्कि ज़मीनी हकीकत है। अगर यह गलत है, तो मुखिया सामने आए, पंचायत भवन में बैठे, जनता को जवाब दे और हिसाब दे।
किसानों की अनदेखी: पैक्स अध्यक्ष की भूमिका पर सवाल
गांव में किसानों की फसल खरीद के लिए पैक्स अध्यक्ष नियुक्त है। लेकिन सच्चाई यह है कि:
- समय पर फसल खरीद नहीं होती
- किसान महीनों इंतज़ार करता है
- मजबूरी में बिचौलियों को सस्ती दर पर बेचता है
यह सीधे‑सीधे किसानों के हक़ पर डाका है। सवाल यह है:
पैक्स अध्यक्ष का काम किसानों की मदद करना है या उन्हें मजबूर करना?
जब किसान को उसकी मेहनत का सही दाम समय पर नहीं मिलता, तो गांव का विकास कैसे होगा?
अब सवाल और जवाब दोनों ज़रूरी हैं
यह ब्लॉग किसी व्यक्ति विशेष के खिलाफ नहीं है, बल्कि पूरी व्यवस्था से जवाब मांगता है:
- पानी की टंकी कब चालू होगी?
- नाली की सफाई कब होगी?
- स्वास्थ्य केंद्र में डॉक्टर कब आएंगे?
- योजनाओं का हिसाब कौन देगा?
गांव अब चुप नहीं रहना चाहता।
भविष्य: उम्मीद अभी बाकी है
आयर आज भी बेहतर बन सकता है। यहां:
- संसाधन हैं
- लोग हैं
- क्षमता है
बस ज़रूरत है:
- ईमानदार नेतृत्व की
- जवाबदेही की
- जनता की जागरूकता की
निष्कर्ष: यह सिर्फ़ गांव की नहीं, सिस्टम की कहानी है
मेरा गांव आयर सिर्फ़ एक गांव नहीं, बल्कि हज़ारों गांवों की तस्वीर है।
अगर आप भी मानते हैं कि गांवों को भी जवाब मिलना चाहिए, तो:
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जब गांव जागेगा, तभी सिस्टम बदलेगा। 🌱








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1 Comments
Good Job Sachai aise hi dikhani chahiye
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